इंसान की सफलता में भाग्य उसका साथी है, लेकिन भाग्य ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि इंसान के कर्म ही भाग्य की रचना करते हैं, इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए, तभी भाग्य का साथ मिलता है। कर्म और भाग्य दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। कर्म किए बगैर भाग्य नहीं फलता और भाग्य के बगैर कर्म की कोई गति नहीं है। यदि मनुष्य के कर्म अच्छे हैं, तो भाग्य उससे विमुख नहीं हो सकता।
इसके विपरीत भाग्य बलवान है और कर्म अनुकूल नहीं है, तो भाग्य भी उसका अधिक साथ नहीं देता। चाणक्य के अनुसार कुछ लोग कहते हैं कि जब भाग्य ही सब कुछ है, तो मेहनत करना बेकार है। वहीं अगर भाग्य में ये लिखा हो कि कोशिश करने पर ही मिलेगा, तब क्या करोगे? सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठे रहने वालों को कुछ नहीं मिलता, बल्कि जो कर्म करते हैं, भाग्य उनका साथ देता ही है, साथ ही वे अपने पुरुषार्थ की वजह से कई गुना लाभ प्राप्त करते हैं। किसी का भाग्य कमजोर भी हो, तो व्यक्ति उसे अपने पुरुषार्थ से पूरी तरह बदल सकता है।
महाभारत में श्रीकृष्ण ने भी सिर्फ कर्म करने को प्रधानता दी। वे कहते हैं कि मनुष्य को फल की इच्छा किए बगैर कर्म करने चाहिए। कर्मवीर ही हर जगह और हर काल में फूलते-फलते हैं। उनमें ऐसे गुण होते हैं कि एक ही क्षण में उनका बुरा समय भी अच्छा बन जाता है।
उनके सामने कैसा भी संकट आ जाए, वे बिल्कुल नहीं घबराते हैं। वे परेशान होकर किसी काम को छोड़ते नहीं, बल्कि अपनी असफलताओं का आकलन करके वे पुन: प्रयास शुरू कर देते हैं, जिसकी वजह से उन्हें सफलता मिलती है।
संत तुलसीदास का कहना था कि इस संसार में सभी कुछ है जिसे हम पाना चाहें तो प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन कर्महीन व्यक्ति इच्छित चीजों को पाने से वंचित रह जाते हैं। कर्म का परिवार और गोत्र इत्यादि से भी कुछ लेना-देना नहीं है।
महाभारत में कर्ण ने कहा कि कौन से कुल में जन्म लेना यह भाग्य के हाथ में है, लेकिन पराक्रम करना मेरे हाथ में है। सच्चाई ये ही है कि ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है, जो स्वयं की मदद करते हैं। अथर्ववेद में कहा गया है कि मेरे दाएं हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में जय। इसलिए जब किसी मनुष्य को ये लगे कि उसका भाग्य उसका साथ नहीं दे रहा है, तो उसे ये सवाल अपने आपसे पूछना चाहिए कि क्या ये दुर्लभ मनुष्य योनि उसे उसी भाग्य की बदौलत नहीं मिली है?
19 February,2019
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